पार्किंसन रोग (Parkinson’s Disease) एक न्यूरोलॉजिकल यानी दिमाग से जुड़ा हुआ रोग है इसलिए अक्सर लोगों के मन में ये सवाल रहता है कि “क्या पार्किंसन का इलाज संभव है?” जिसका जवाब जानना बहुत ज़रूरी है। लेकिन इससे पहले पार्किन्सन रोग के जुड़ी कुछ आम जानकारियाँ लेनी चाहिए जो नीचे दी गयी हैं।
पार्किंसन एक प्रोग्रेसिव न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें दिमाग के एक हिस्से में मौजूद डोपामिन (Dopamine) नामक केमिकल की मात्रा कम होने लगती है। डोपामिन एक न्यूरोट्रांसमीटर होता है, जो शरीर की एक्टिविटी को कंट्रोल करता है। इसकी कमी से व्यक्ति की मांसपेशियों में कड़ापन, हाथ-पैरों में कंपन (Tremor), चाल में असमानता और शरीर का बैलेंस बिगड़ने लगता है। ज़्यादातर 60 वर्ष की उम्र के बाद इसके लक्षण सामने आने लगते हैं।
ईन लक्षणों से पार्किंसन रोग की पहचान की जा सकती है -
इसका सटीक कारण अब तक पूरी तरह क्लियर नहीं है, लेकिन कुछ कारक इसके लिए जिम्मेदार माने जाते हैं:
जेनेटिक कारण: कुछ मामलों में यह रोग जेनेटिक हो सकता है यानी अगर परिवार में किसी को पहले यह रोग रहा हो तो संतान को भी हो सकता है।
वातावरण से जुड़े कारक: कई रिसर्च बताती हैं कि कुछ कीटनाशकों, हर्बिसाइड्स और जहरीले रसायनों के लंबे समय तक कांटेक्ट में रहना पार्किंसन के खतरे को बढ़ा सकता है।
दिमाग की कोशिकाओं का नष्ट होना: डोपामिन पैदा करने वाली कोशिकाएं किसी कारणवश नष्ट हो जाती हैं, जिससे यह समस्या पैदा होती है।
पार्किंसन रोग का फिलहाल कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को कंट्रोल करने और बीमारी की स्पीड धीमा करने के लिए कई असरदार इलाज मौजूद हैं। सही समय पर उपचार शुरू करने से मरीज एक एक्टिव और बैलेंस्ड लाइफ जी सकता है।
ईन तरीकों से पार्किंसन का आयुर्वेदिक उपचार करने में मदद मिल सकती है -
इन जड़ी-बूटियों में न्यूरोप्रोटेक्टिव गुण होते हैं, जो दिमाग की कोशिकाओं को सुरक्षित रखने में मदद करते हैं।
तुलसी एंटीऑक्सिडेंट्स से भरपूर होती है और हल्दी में करक्यूमिन होता है, जो सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करता है।
पंचकर्म चिकित्सा का ये दो भाग पार्किंसन के मरीजों को मानसिक शांति, तंत्रिकाओं में बैलेंस और नींद की समस्या में राहत दिलाते हैं।
ईन उपायों से पार्किंसन का घरेलु उपचार करने में मदद मिल सकती है।
सही खानपान और लाइफस्टाइल: एंटीऑक्सिडेंट वाला खाना खाएं जैसे- अखरोट, ब्लूबेरी और हरी सब्जियां। कैफीन और शराब का परहेज करें, संतुलित और पौष्टिक खाना खाएं, रोज़ नींद लें और मेंटल स्ट्रेस से दूरी बनाए रखें।
योग और ध्यान: योगासन जैसे - वज्रासन, ताड़ासन, शवासन और प्राणायाम (ख़ासकर अनुलोम विलोम, भ्रामरी) - ये योग शरीर और मन दोनों के बैलेंस को बेहतर करते हैं।
मेंटल हेल्थ का ध्यान: इस रोग में परिवार और मित्रों का सहयोग, काउंसलिंग और पॉजिटिव सोच बहुत फायदा कर सकती है।
ईन दवाओं और तरीकों से पार्किंसन का एलोपैथिक उपचार किया जा सकता है -
दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं – जैसे भ्रम, नींद की गड़बड़ी या ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव।
यह एक सर्जरी है जिसमें दिमाग में एक डिवाइस इम्प्लांट किया जाता है जो इलेक्ट्रिक संकेतों के जरिए लक्षणों को कंट्रोल करता है। यह उन मरीजों के लिए उपयोगी है जिन पर दवाएं असर नहीं कर रही हों।
पार्किंसन के लक्षण, कारण और इलाज के अलावा इस रोग से जुड़े कुछ ज़रूरी सवाल और जानकारियाँ नीचे दी गयी हैं जिससे रोगी को फायदा हो सकता है।
वर्तमान समय में पार्किंसन का कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन सही समय पर दवाएं, लाइफस्टाइल में बदलाव और थेरेपी से इसके लक्षणों को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।
लास्ट स्टेज में, रोगियों को अक्सर व्हीलचेयर या बिस्तर पर ही रहने की ज़रूरत होती है, और उन्हें दैनिक कार्यों के लिए दूसरों की मदद की ज़रूरत होती है।
नहीं, यह रोग संक्रामक नहीं है। यह न तो छूने से फैलता है और न ही किसी तरह के कांटेक्ट से।
आज के इस ब्लॉग में हमनें आपको एक आम लेकिन ज़रूरी सवाल “क्या पार्किंसन का इलाज संभव है?” का जवाब दिया और साथ ही पार्किंसन के इलाज के बारे में बताया। लेकिन आप सिर्फ़ ईन सुझावों पर निर्भर ना रहें। अगर आपको या आपके किसी साथी/रिश्तेदार को पार्किंसन की समस्या है तो तुरंत किसी डॉक्टर से संपर्क ज़रूर करें या कर्मा आयुर्वेदा अस्पताल में भारत के बेस्ट आयुर्वेदिक डॉक्टर से अपना इलाज करवा सकते हैं। हेल्थ से जुड़े ऐसे ब्लॉग्स और आर्टिकल्स के लिए जुड़े रहें कर्मा आयुर्वेदा के साथ।
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