बढ़ती उम्र के साथ हमारे शरीर और दिमाग में कई बदलाव आते हैं। इनमें कुछ बदलाव सामान्य होते हैं, लेकिन कुछ सीरियस बीमारियों का संकेत भी हो सकते हैं। जिनमें पार्किंसन (Parkinson’s Disease) और अल्जाइमर (Alzheimer’s Disease) ख़ास हैं।
ये दो ऐसी गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारियाँ हैं जो बुजुर्गों में आमतौर पर देखने को मिलती हैं। ईन दोनों बिमारियों के लक्षण कुछ हद तक एक जैसे होते हैं, इसलिए बीमारी की पहचान में अक्सर उलझन हो जाती है जिसका असर इलाज पर भी पड़ता है। इसलिए ये सवाल ज़्यादातर पूछा जाता है कि पार्किंसन और अल्जाइमर में क्या फर्क है? जिसकी डिटेल जानकारी नीचे दी गयी है।
पार्किंसन डिज़ीज़ एक न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है जिसमें दिमाग का वह भाग जो शरीर की एक्टिविटी को कंट्रोल करता है (Basal Ganglia), धीरे-धीरे खराब होने लगता है। यह रोग डोपामिन (Dopamine) नामक केमिकल की कमी से होता है।
अल्जाइमर डिज़ीज़ भी एक न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है लेकिन यह ख़ासकर दिमाग की सोचने, समझने और याद रखने की क्षमता पर असर डालती है। इसे डिमेंशिया (मनोभ्रंश) का सबसे आम प्रकार माना जाता है।
नीचे दिए गए कुछ ख़ास आधारों पर दोनों बिमारियों में अंतर किया जा सकता है -
ख़ास असर: पार्किंसन शरीर की एक्टिविटी पर असर डालता है। अल्जाइमर मेमोरी और सोचने की क्षमता पर।
शुरुआती लक्षण: हाथ-पैर कांपना, चाल धीमी होना - ये पार्किंसन के ख़ास लक्षण हैं। जबकि अल्जाइमर में भूलने की बीमारी, निर्णय में गड़बड़ी होती है।
दिमाग पर असर: पार्किंसन में डोपामिन उत्पादक कोशिकाओं पर असर होता है। अल्जाइमर में दिमाग की संज्ञानात्मक कोशिकाओं पर असर होता है।
मेमोरी पर असर: पार्किंसन में शुरुआत में नहीं, लेकिन बाद के चरणों में मेमोरी पर असर हो सकता है। अल्जाइमर में शुरुआत से ही मेमोरी प्रभावित होती है।
इलाज: पार्किंसन में दवाओं से लक्षणों में सुधार किया जा सकता है, पर पूरा इलाज नहीं। अल्जाइमर में कुछ दवाओं से प्रगति धीमी हो सकती है, पर इलाज नहीं।
भाषा और व्यवहार पर असर: पार्किंसन में ये लक्षण बाद के चरणों में दिखाई देते हैं। जबकि अल्जाइमर में शुरुआती चरणों में ही असर दिखने लगता है।
लाइफ एक्स्पेक्टेंसी: पार्किंसन में लाइफ एक्स्पेक्टेंसी नॉर्मल से थोड़ी कम होती है। जबकि अल्जाइमर में धीरे-धीरे कम होती जाती है।
हां, पार्किंसन से ग्रस्त कुछ मरीजों में बाद के चरणों में "पार्किंसन डिमेंशिया" विकसित हो सकता है। इसका मतलब यह है कि दिमाग की सोचने और याद रखने की क्षमता धीरे-धीरे घटने लगती है। लेकिन यह अल्जाइमर की तुलना में अलग होता है और इसकी प्रगति थोड़ी अलग तरीके से होती है।
कुछ दुर्लभ मामलों में हां, व्यक्ति को दोनों बीमारियाँ हो सकती हैं। इसे मिश्रित डिमेंशिया (Mixed Dementia) कहा जाता है, जहाँ अल्जाइमर और पार्किंसन दोनों के लक्षण एक साथ देखने को मिलते हैं।
सामान्य भूलने की बीमारी उम्र बढ़ने का हिस्सा हो सकती है, जिसमें व्यक्ति कभी-कभी बातें भूल जाता है लेकिन खुद सुधार कर लेता है। जबकि अल्जाइमर में भूलने की आदत बढ़ती जाती है और व्यक्ति को इसका अहसास नहीं होता।
आज के इस ब्लॉग में हमनें आपको बताया कि पार्किंसन और अल्जाइमर में क्या फर्क है। लेकिन आप सिर्फ़ ईन सुझावों पर निर्भर ना रहें। अगर आपको या आपके किसी साथी/रिश्तेदार को पार्किंसन या अल्जाइमर की समस्या है तो तुरंत किसी डॉक्टर से संपर्क ज़रूर करें या कर्मा आयुर्वेदा अस्पताल में भारत के बेस्ट आयुर्वेदिक डॉक्टर से अपना इलाज करवा सकते हैं। हेल्थ से जुड़े ऐसे ब्लॉग्स और आर्टिकल्स के लिए जुड़े रहें कर्मा आयुर्वेदा के साथ।
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