पार्किंसन रोग व्यक्ति के चलने-फिरने, बोलने, बैलेंस बनाए रखने और चेहरे के हावभाव तक पर असर डालता है। वैसे, इसका कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन दवाओं और थेरेपी की मदद से इसके लक्षणों को काफ़ी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। इसलिए इसके बारे में पता होना चाहिए कि पार्किंसन रोग की दवाएं कौनसी हैं। लेकिन पहले इस रोग के बारे में आम जानकारी लेनी चाहिए जो नीचे दी गयी है।
यह एक प्रगतिशील न्यूरोलॉजिकल (तंत्रिका तंत्र से जुड़ा) रोग है, जो दिमाग में डोपामिन नाम के केमिकल की कमी के कारण होता है। डोपामिन शरीर को चिकनाई देता है और बैलेंस बनाकर चलने में मदद करता है। इसकी कमी से शरीर में कंपन, जकड़न और एक्टिविटी में कमी जैसी समस्याएं शुरू हो जाती हैं।
पार्किंसन के लिए दी जाने वाली दवाएं ख़ासकर डोपामिन को बढ़ाने, उसकी नकल करने या उसके टूटने को रोकने का काम करती हैं। ये दवाइयां इस प्रकार हैं –
लेवोडोपा शरीर में जाकर डोपामिन में बदल जाती है, और कार्बिडोपा उसकी समयपूर्व टूट-फूट को रोकती है। यह कंपन, जकड़न और धीमी गति में तेज़ राहत देती है। मतली, चक्कर, ब्लड प्रेशर में गिरावट और लंबे समय तक उपयोग पर डिस्काइनेसिया यानी अकंट्रोल हरकतें – इसके साइड इफेक्ट्स हैं।
ये दवाएं डोपामिन की नकल करती हैं और दिमाग में डोपामिन रिसेप्टर्स को एक्टिव करती हैं। लक्षण अगर हलके हो तो यह दवा असरदार है। इसके साइड इफेक्ट्स हैं – नींद की ज़्यादा इच्छा, मतिभ्रम या भ्रम की स्थिति और जुआ, ज़्यादा खरीदारी जैसे व्यवहार से जुड़े बदलाव।
ये एंजाइम को ब्लॉक करते हैं जो डोपामिन को तोड़ते हैं, जिससे दिमाग में डोपामिन की मात्रा बनी रहती है। इस दवा से शुरुआती अवस्था में लक्षणों में लाभ होता है और यह लेवोडोपा की खुराक घटाने में मददगार है। साइड इफेक्ट्स: सिरदर्द, अनिद्रा और अन्य दवाओं से रिएक्शन।
ये दवाएं लेवोडोपा के असर को बढ़ाती हैं और उसे ज़्यादा समय तक काम करने देती हैं। साइड इफेक्ट्स: दस्त, लीवर पर असर खासकर Tolcapone.
ये दवाएं दिमाग में एसीटाइलकोलीन के असर को घटाकर बैलेंस बनाती हैं। कंपन (Tremor) पर ख़ासकर फायदा करती है। याददाश्त की कमजोरी, भ्रम, मुंह सूखना और कब्ज इसके साइड इफेक्ट्स हैं।
यह मध्यम रूप से लक्षणों को कम करता है, ख़ासकर डिस्काइनेसिया को। शुरुआती लक्षणों में उपयोगी, लेवोडोपा से होने वाली हरकतों को कम करता है। इसके साइड इफेक्ट्स हैं – पैरों में सूजन और नीली चमड़ी (Livedo reticularis)
ध्यान रखें, बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी दवा ना लें और डाइट में प्रोटीन की मात्रा बैलेंस्ड रखें, क्योंकि प्रोटीन से कुछ दवाओं का असर ठीक से नहीं हो पता।
पार्किंसन की दवाओं के साथ यदि फिजियोथेरेपी, वाक थेरेपी, और मेंटल सपोर्ट मिल जाए तो बेहतर रिजल्ट मिलते हैं। रोगी को एक्सरसाइज, बैलेंस्ड डाइट और अच्छी नींद पर ध्यान देना चाहिए।
पार्किंसन के इलाज के अलावा कुछ जरुरी सवाल और जानकारियाँ नीचे दी गयी हैं जो रोगी को बहुत फायदा पहुंचा सकती हैं।
हां, लक्षणों को कंट्रोल करने के लिए दवाएं आमतौर पर जीवनभर लेनी पड़ती हैं। हालांकि समय-समय पर खुराक या दवाओं का प्रकार बदला जा सकता है।
कुछ दवाएं जैसे Dopamine Agonists और Anticholinergics मानसिक भ्रम, नींद में बदलाव या व्यवहार से जुड़े बदलाव कर सकती हैं। इसलिए इन्हें डॉक्टर की निगरानी में ही लें।
Levodopa + Carbidopa को सबसे असरदार माना जाता है, खासकर शुरुआती और मध्यम लक्षणों में।
पूरी तरह नहीं, लेकिन आयुर्वेदिक सपोर्ट, जैसे अश्वगंधा, ब्राह्मी या रोज़ योग/प्राणायाम से रोग की प्रगति धीमी की जा सकती है। मगर दवाएं बंद करना ठीक नहीं।
आज के इस ब्लॉग में हमनें आपको पार्किंसन रोग की दवाएं बतायी। लेकिन आप सिर्फ़ ईन सुझावों पर निर्भर ना रहें। अगर आपको या आपके किसी साथी/रिश्तेदार को पार्किंसन की समस्या है तो तुरंत किसी डॉक्टर से संपर्क ज़रूर करें या कर्मा आयुर्वेदा अस्पताल में भारत के बेस्ट आयुर्वेदिक डॉक्टर से अपना इलाज करवा सकते हैं। हेल्थ से जुड़े ऐसे ब्लॉग्स और आर्टिकल्स के लिए जुड़े रहें कर्मा आयुर्वेदा के साथ।
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